गोमुखासन-
इस आसन की पूर्ण स्थिति आने के बाद व्‍यक्ति की स्थिति गाय के मुख के सामान हो जाती हैा इसलिए इस आसन को गोमुखासन के नाम से जाना जाता हैा
यह आसन अध्‍या‍त्मिक रूप से विशेष महत्‍व रखता है तथा इस आसन का प्रयोग स्‍वाध्‍याय, भजन, स्‍मरण आदि में किया जाता हैा




इस आसन का प्रयोग स्‍वास्‍थ्‍य की दृष्टि से भी बहुत ही उपयोगी होता हैा तो आइए जानते हैं , इसके लाभ एवं उपयोग के बारे में कि इसका प्रयोग अपने स्‍वास्‍थ्‍य को सही रखने के लिए कैसे किया जा सकता है-

  • इस आसन का प्रयोग फेफडे संबंधी रोगों में बहुत ही लाभकारी हैा और फेफडे में वायु के प्रवाह के द्वारा उन छिद्रों की सफाई करती हैा 

  • इस आसन को नियमित करने से छाती चौडा. एवं मजबूत होता हैा यह आसन कंधों, घुटनों , जॉघ , कुहनियों , कमर व टखनों को मजबूत करता हैा तथा हाथ व पैरों को पुष्‍ट करता हैा 

  • इसके नियमित करने से ताजगी, स्‍फूर्ति एवं शरीर के विकास में काफी फायदेमंद होता हैा 
  • यह आसन सांस संबंधी रोग जैसे- दमा, टीबी के रोगियों को ठीक करता हैा 
  • यह कंधे में अकड.न , वात रोग, पीठ दर्द , अपच, हार्निया तथा आंतों की बिमारियों को दूर करता हैा 
  • इस आसन को करने से अंडकोष संबंधी समस्‍त रोग ठीक होता हैा 
  • इसके करने से प्रमेह, गठिया, मधुमेह , धातु विकार, स्‍वप्‍नदोष, शुक्र तारल्‍य आदि रोग ठीक होते हैा
  • यह गुर्दे के विषाक्‍त द्रवों को शरीर से बाहर निकालकर रूके हुए पेशाब केा बाहर करता हैा 
  • वैसे व्‍यक्ति जिनके घुटनों में दर्द रहता है या जिसे गुर्दा सम्‍बन्धित रोग है उन्‍हें गोमुखासन करना चाहिएा 

  • यह आसन उन महिलाओं को अवश्‍य करना चाहिए जिनके स्‍तन किसी कारण से दबे , छोटे तथा अविकसित रह गए होा
  • यह आसन स्त्रियों के सौदर्यता को बढाता हैा और यह प्रदर रोग में लाभ प्रदान करता हैा
गोमुखासन की अभ्‍यास की विधि-

  • चटाई पर बैठकर अपने बांए पैर को घुटनों से मोड़कर दाए पैर के निचे से निकालते हुए एड़ी को पीछे की तरफ नितम्ब के पास सटाकर रखें।
  • अब दाए पैर को भी बाए पैर के उपर रखकर एड़ी को पीछे नितम्ब के पास सटाकर रखें।


  • इसके बाद बाए हाथ को कोहनी से मोड़कर कमर की बगल से पीठ के पीछे ले जाए तथा दाहिने हाथ के कोहनी से मेाड़कर कंधे के उपर सिर के पास से पीछे की ओर ले जाए।
  • दोनेां हाथ की अंगुलियों केा हुक की तरह आपस में फंसा लें।
  • सिर व रीढ़ को बिल्कुल सीधा रखें और सीने को भी तानकर रखें।
  • पूर्णरूप से आसन बनने के बाद इस स्थिति में 2 मिनट तक रूकें और फिर हाथ व पैरांें की स्थिति बदलकर दूसरे तरफ से भी इस आसन को इसी तरह से करें।
  • इसके बाद 2 मिनट तक आराम करें और पुनः इसी तरह आसन करें।
  • यह आसन दोनेां तरफ से चार-चार बार करना चाहिए।
महत्वपूर्ण बातें-
  • इस आसन को करते समय रीढ़ की हडी चेतना तरंगों की गति पर तथा श्वास प्रक्रिया पर ध्यान देना चाहिए।
इन्हें भी जानेंः-


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