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इस्नोफिलीया एक सामान्य बिमारी है, जो ठंढे के मौसम में अधिकतर लोगों को परेशान करती है। इस्नोफिलीया की मात्रा शरीर में समान्यतः 1 से 6 प्रतिशत तक ही होती है। इससे अधिक होने पर यह व्यक्ति को परेशान करती है। इसके बढ़ने से व्यक्ति को सर्दी-जुकाम, खाॅसी, गले में सूजन , गले में दर्द इत्यादि जैसे कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसके बढ़ने का एक मुख्य कारण यह भी है कि बारिस के मौसम या ठंढ़ के मौसम में ठंढ़ लगने से इसकी मात्रा बढ़ जाती है , जो शरीर को नुकसान पहुॅचाती है। इस्नोफीलिया के बढ़ने से होनेवाली सर्दी-जुकाम, खाॅसी बार-बार होती है। इसका एक कारण पर्यावरण का दूषित होना भी हो सकता है। पर्यावरण में उड़ते धूलकण के कारण भी इस्नोफिलीया बढ़ सकती है।
इस बिमारी से बचने के लिए गर्म चीजों का सेवन करना चाहिए। जब इस्नोफिलीया परेशान करने लगे तो गुनगुने जल का ही सेवन करना चाहिए , ठंढ़े जल का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही योग, प्रणायाम का भी अभ्यास करना चाहिए। इस बिमारी से बचाव में योग व प्रणायाम काफी प्रभावकारी एवं प्रभावशाली होता है। इससे बचने के लिए गर्म पदार्थो का सेवन करना चाहिए एवं ठंढ़ से रोगी को बचना चाहिए।
इसका एक विशेष उपाय यह भी है कि-
- इस्नोफिलीया के बढ़ने पर गाय के घी को गर्म करके एक-एक बूंद रोगी के नाक में डालना चाहिए। इससे इस्नोफिलीया रोग में काफी लाभ होता है एवं सर्दी-जुकाम में काफी फायदा होता है।
- इस बिमारी से ग्रसित रोगी को गुनगुने जल पीना चाहिए।
- गोमूत्र के सेवन करने से भी इस्नोफिलीया में लाभ होता है।
- तुलसी के पतों का काढ़ा बनाकर पीने से भी इस्नोफिलीया में लाभ होता है।
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